सब कुछ मिला हमें जो तिरे नक़्श-ए-पा मिले
हादी मिले दलील मिले रहनुमा मिले
Jaun Eliya
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Mohsin Naqvi
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तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं
है लुत्फ़ तग़ाफ़ुल में या जी के जलाने में
ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
बुतों से बच के चलने पर भी आफ़त आ ही जाती है
बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप
सख़्त दुश्वार है पहलू में बचाना दिल का
गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या
इंसान वो क्या जिस को न हो पास ज़बाँ का
नौ-गिरफ़्तार-ए-क़फ़स हूँ मुझे कुछ याद नहीं
रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया
'ज़हीर'-ए-ख़स्ता-जाँ सच है मोहब्बत कुछ बुरी शय है