है लुत्फ़ तग़ाफ़ुल में या जी के जलाने में
वादा तो किया होता गो वो न वफ़ा होता
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यूँ तो होते हैं मोहब्बत में जुनूँ के आसार
गेसू से अंबरी है सबा और सबा से हम
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
तुम ने पहलू में मिरे बैठ के आफ़त ढाई
'ज़हीर'-ए-ख़स्ता-जाँ सच है मोहब्बत कुछ बुरी शय है
इश्क़ है इश्क़ तो इक रोज़ तमाशा होगा
आख़िर मिले हैं हाथ किसी काम के लिए
बुझाऊँ क्या चराग़-ए-सुब्ह-गाही
तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं
मुरादें कोई पाता है किसी की जान जाती है
कुछ न कुछ रंज वो दे जाते हैं आते जाते
यहाँ देखूँ वहाँ देखूँ इसे देखूँ उसे देखूँ