हम और चाह ग़ैर की अल्लाह से डरो
मिलते हैं तुम से भी तो तुम्हारी ख़ुशी से हम
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बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया
चौंक पड़ता हूँ ख़ुशी से जो वो आ जाते हैं
है लुत्फ़ तग़ाफ़ुल में या जी के जलाने में
तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं
बिगड़ कर अदू से दिखाते हैं आप
इश्क़ है इश्क़ तो इक रोज़ तमाशा होगा
किस की आशुफ़्ता-मिज़ाजी का ख़याल आया है
सख़्त दुश्वार है पहलू में बचाना दिल का
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
क्यूँ किसी से वफ़ा करे कोई
इश्क़ और इश्क़-ए-शोला-वर की आग
अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या