इश्क़ है इश्क़ तो इक रोज़ तमाशा होगा
आप जिस मुँह को छुपाते हैं दिखाना होगा
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ख़ैर से रहता है रौशन नाम-ए-नेक
नौ-गिरफ़्तार-ए-क़फ़स हूँ मुझे कुछ याद नहीं
ब'अद मरने के भी मिट्टी मिरी बर्बाद रही
मुरादें कोई पाता है किसी की जान जाती है
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या
गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या
लुत्फ़ जब आए शिकवा-संजी का
उन को हाल-ए-दिल-ए-पुर-सोज़ सुना कर उट्ठे
हाथ से हैहात क्या जाता रहा
रंज राहत-असर न हो जाए
रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया