ब'अद मरने के भी मिट्टी मिरी बर्बाद रही
मिरी तक़दीर के नुक़सान कहाँ जाते हैं
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1051) Peoples Rate This
गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या
बुझाऊँ क्या चराग़-ए-सुब्ह-गाही
इश्क़ है इश्क़ तो इक रोज़ तमाशा होगा
वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे
दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ
वो नैरंग-ए-उल्फ़त को क्या जानता है
है दिल में अगर उस से मोहब्बत का इरादा
दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा
हाथ से हैहात क्या जाता रहा
रंज राहत-असर न हो जाए
आज तक कोई न अरमान हमारा निकला
ये सब कहने की बातें हैं हम उन को छोड़ बैठे हैं