बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया
ले तुझे आज़मा के देख लिया
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रक़ीबों को हमराह लाना न छोड़ा
जहाँ में कौन कह सकता है तुम को बेवफ़ा तुम हो
नसीहत-गरो दिल लगाया तो होता
पान बन बन के मिरी जान कहाँ जाते हैं
सख़्त दुश्वार है पहलू में बचाना दिल का
वो नैरंग-ए-उल्फ़त को क्या जानता है
जाते हो तुम जो रूठ के जाते हैं जी से हम
आज आए थे घड़ी भर को 'ज़हीर'-ए-नाकाम
ऐ शैख़ अपने अपने अक़ीदे का फ़र्क़ है
वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे
किस की आशुफ़्ता-मिज़ाजी का ख़याल आया है
सब कुछ मिला हमें जो तिरे नक़्श-ए-पा मिले