आज आए थे घड़ी भर को 'ज़हीर'-ए-नाकाम
आप भी रोए हमें साथ रुला कर उठ्ठे
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ऐ मेहरबाँ है गर यही सूरत निबाह की
वो जो कुछ कुछ निगह मिलाने लगे
कोई पूछे तो सही हम से हमारी रूदाद
किस मुँह से हाथ उठाएँ फ़लक की तरफ़ 'ज़हीर'
यहाँ देखूँ वहाँ देखूँ इसे देखूँ उसे देखूँ
अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या
भूल कर हरगिज़ न लेते हम ज़बाँ से नाम-ए-इश्क़
ऐसे की मोहब्बत को मोहब्बत न कहेंगे
तलाफ़ी वफ़ा की जफ़ा चाहता हूँ
साक़िया मर के उठेंगे तिरे मय-ख़ाने से
वो किसी से तुम को जो रब्त था तुम्हें याद हो कि न याद हो
फटा पड़ता है जोबन और जोश-ए-नौ-जवानी है