गनचह Poetry

क़मर-गज़ीदा नज़र से हाला कहाँ से आया

ज़ुबैर शिफ़ाई

अधूरी

ज़िया जालंधरी

सब्र ख़ुद उकता गया अच्छा हुआ

याक़ूब उस्मानी

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

वो निगाह मिल के निगाह से ब-अदा-ए-ख़ास झिझक गई

वक़ार बिजनोरी

वो तन्हा मेरे ही दरपय नहीं है

वामिक़ जौनपुरी

सनम ने जब लब-ए-गौहर-फ़शान खोल दिए

वलीउल्लाह मुहिब

काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर

वलीउल्लाह मुहिब

दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ

वलीउल्लाह मुहिब

ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच

वलीउल्लाह मुहिब

तिरे लब-बिन है दिल में शोला-ज़न मुल जिस को कहते हैं

वली उज़लत

नंग नहीं मुझ को तड़पने से सँभल जाने का

वली उज़लत

है उस की ज़ुल्फ़ से नित पंजा-ए-अदू गुस्ताख़

वली उज़लत

दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को

वली उज़लत

ज़िंदगी

वहीदुद्दीन सलीम

आज फिर सर-ए-मक़्तल दे के ख़ुद लहू हम ने

वाहिद प्रेमी

क्यूँ तिरी क़ंद-लबी ख़ुश-सुख़नी याद आई

वहीद अख़्तर

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

किस से पूछूँ हाए मैं इस दिल के समझाने की तरह

ताबाँ अब्दुल हई

आई बहार शोरिश-तिफ़लाँ को क्या हुआ

ताबाँ अब्दुल हई

सुख़न की शब लहू होती रहेगी

सय्यद अमीन अशरफ़

गर्दिश-ए-आब-ओ-हवा जानती है

सय्यद अमीन अशरफ़

तिरी निगाह की अनियाँ जिगर में सलियाँ हैं

सिराज औरंगाबादी

पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो

सिराज औरंगाबादी

मख़मूर चश्मों की तबरीद करने कूँ शबनम है सरदाब शोरों की मानिंद

सिराज औरंगाबादी

मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब

सिराज औरंगाबादी

है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़

सिराज औरंगाबादी

दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा

सिराज औरंगाबादी

भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा

सिराज औरंगाबादी

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