गनचह Poetry (page 7)

नज़र से सफ़्हा-ए-आलम पे ख़ूनीं दास्ताँ लिखिए

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया

अख़्तर अंसारी

किस चमन की ख़ाक में फूलों का मुस्तक़बिल नहीं

अकबर हैदरी

उस के लहजे का वो उतार चढ़ाओ

अहमद जावेद

मगर वो दिया ही नहीं मान कर के

अहमद जावेद

दुनिया से तन को ढाँप क़यामत से जान को

अहमद जावेद

चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह

अहमद फ़राज़

लो हम बताएँ ग़ुंचा-ओ-गुल में है फ़र्क़ क्या

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे

आग़ा हज्जू शरफ़

बुलबुल का दिल ख़िज़ाँ के सदमे से हिल रहा है

आग़ा हज्जू शरफ़

तौफ़ीक़ से कब कोई सरोकार चले है

अदा जाफ़री

गुलशन में न हम होंगे तो फिर सोग हमारा

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

तज्दीद-ए-रिवायात-ए-कुहन करते रहेंगे

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

क़द सर्व चश्म नर्गिस रुख़ गुल दहान ग़ुंचा

आबरू शाह मुबारक

क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला

आबरू शाह मुबारक

फटा हुआ जो गरेबाँ दिखाई देता है

आबिद वदूद

वो शख़्स जिस ने ख़ुद अपना लहू पिया होगा

अब्दुर्रहीम नश्तर

गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ

अब्दुल वहाब यकरू

सुन रख ओ ख़ाक में आशिक़ को मिलाने वाले

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मैं और उस ग़ुंचा-दहन की आरज़ू

अब्दुल हमीद अदम

मय-कदा था चाँदनी थी मैं न था

अब्दुल हमीद अदम

सर्व-क़द लाला-रुख़ ओ ग़ुंचा-दहन याद आया

आग़ा अकबराबादी

मज़ा है इम्तिहाँ का आज़मा ले जिस का जी चाहे

आग़ा अकबराबादी

बुत-ए-ग़ुंचा-दहन पे निसार हूँ मैं नहीं झूट कुछ इस में ख़ुदा की क़सम

आग़ा अकबराबादी

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