लो हम बताएँ ग़ुंचा-ओ-गुल में है फ़र्क़ क्या
इक बात है कही हुई इक बे-कही हुई
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अबरू न सँवारा करो कट जाएगी उँगली
मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता है
गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई
क्या कर रहे हो ज़ुल्म करो राह राह का
बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले
बुतों के वास्ते तो दीन-ओ-ईमाँ बेच डाले हैं
लाख लाख एहसान जिस ने दर्द पैदा कर दिया
रुख़्सार के परतव से बिजली की नई धज है
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई
मैं ख़ुदी में मुब्तिला ख़ुद को मिटाने के लिए
किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह