अबरू न सँवारा करो कट जाएगी उँगली
नादान हो तलवार से खेला नहीं करते
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Gulzar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1792) Peoples Rate This
इक बात कहें तुम से ख़फ़ा तो नहीं होगे
गिरी गिर कर उठी पलटी तो जो कुछ था उठा लाई
बड़े सीधे-साधे बड़े भोले-भाले
पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था
मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं
जब्र को इख़्तियार कौन करे
न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई
हमीं हैं मौजिब-ए-बाब-ए-फ़साहत हज़रत-ए-'शाइर'
ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता
बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है