हमीं हैं मौजिब-ए-बाब-ए-फ़साहत हज़रत-ए-'शाइर'
ज़माना सीखता है हम से हम वो दिल्ली वाले हैं
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दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई
मुझ को आता है तयम्मुम न वज़ू आता है
मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं
रुख़्सार के परतव से बिजली की नई धज है
क्या कर रहे हो ज़ुल्म करो राह राह का
कलेजे में हज़ारों दाग़ दिल में हसरतें लाखों
किस तरह जवानी में चलूँ राह पे नासेह
मिरे करीम इनायत से तेरी क्या न मिला
पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था
ज़र्रा भी अगर रंग-ए-ख़ुदाई नहीं देता
क्या ख़बर थी राज़-ए-दिल अपना अयाँ हो जाएगा