आदमी Poetry

मकान ख़ाली है

अज़ीज़ क़ैसी

हर-सम्त ताज़गी सी झरनों की नग़्मगी से कितनी

जाफ़र रज़ा

मस्जिद-ओ-मंदिर का यूँ झगड़ा मिटाना चाहिए

अख़्तर आज़ाद

सुब्ह का धोका हुआ है शाम पर

फ़ारूक़ इंजीनियर

दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर

बिमल कृष्ण अश्क

न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

आख़िरी आदमी

फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी

बहार बन के जब से वो मिरे जहाँ पे छाए हैं

मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

यूँ हसरतों की गर्द में था दिल अटा हुआ

ज़िया फ़तेहाबादी

एक पुरानी कहानी

ज़ेहरा निगाह

रंग

ज़ीशान साहिल

हल्की और भारी चीज़ें

ज़ीशान साहिल

बुझ कर भी शो'ला दाम-ए-हवा में असीर है

ज़ेब ग़ौरी

वो हो कैसा ही दुबला तार बिस्तर हो नहीं सकता

ज़रीफ़ लखनवी

हरे मौसम खिलेंगे सोना बन के ख़ाक बदलेगी

ज़काउद्दीन शायाँ

गेसू-ए-शेर-ओ-अदब के पेच सुलझाता हूँ मैं

ज़हीर अहमद ताज

जब ख़ामुशी ही बज़्म का दस्तूर हो गई

ज़हीर काश्मीरी

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

हर आदमी को ख़्वाब दिखाना मुहाल है

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

मुझे लगते हैं प्यारे तितलियाँ जुगनू परिंदे

ज़फ़र ख़ान नियाज़ी

सर-बुरीदा हुआ मुक़ाबिल है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

हर आदमी कहाँ औज-ए-कमाल तक पहुँचा

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

न कोई बात कहनी है न कोई काम करना है

ज़फ़र इक़बाल

जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ

ज़फ़र इक़बाल

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे

ज़फ़र गोरखपुरी

पुकारे जा रहे हो अजनबी से चाहते क्या हो

ज़फ़र गोरखपुरी

देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे

ज़फ़र गोरखपुरी

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