आदमी Poetry (page 12)

न डगमगाए कभी हम वफ़ा के रस्ते में

हबीब जालिब

कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए

हबीब मूसवी

न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री है

गुलज़ार देहलवी

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर

गुलज़ार

शाम से आँख में नमी सी है

गुलज़ार

बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा

गोपालदास नीरज

फ़ितरत में आदमी की है मुबहम सा एक ख़ौफ़

गोपाल मित्तल

रंगीनी-ए-हवस का वफ़ा नाम रख दिया

गोपाल मित्तल

क्या बताऊँ आज वो मुझ से जुदा क्यूँकर हुआ

गोपाल कृष्णा शफ़क़

सब रंग ना-तमाम हों हल्का लिबास हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मोहब्बत वो है जिस में कुछ किसी से हो नहीं सकता

ग़ुलाम मौला क़लक़

अंदाज़ा आदमी का कहाँ गर न हो शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

नशात-ए-इज़हार पर अगरचे रवा नहीं ए'तिबार करना

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कोई जब छीन लेता है मता-ए-सब्र मिट्टी से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

अपनी नज़र में भी तो वो अपना नहीं रहा

ग़ज़नफ़र

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

ग़ालिब

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं

ग़ालिब

इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया

ग़ालिब

है आदमी बजाए ख़ुद इक महशर-ए-ख़याल

ग़ालिब

वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो

ग़ालिब

किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो

ग़ालिब

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ग़ालिब

पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ार

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

हर आदमी में थे दो चार आदमी पिन्हाँ

फ़ुज़ैल जाफ़री

मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद

फ़ुज़ैल जाफ़री

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