आदमी Poetry (page 10)

साक़ी भले फटकने न दे पास जाम के

राहील फ़ारूक़

हर बात जो न होना थी ऐसी हुई कि बस

इक़बाल उमर

न कोई ग़ैर न अपना दिखाई देता है

इक़बाल मिनहास

क़यामत से बहुत पहले क़यामत क्यूँ न हो बरपा

इक़बाल हैदर

समुंदर के किनारे इक समुंदर आदमियों का

इक़बाल हैदर

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए

इक़बाल अज़ीम

ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की

इक़बाल अशहर

ये जो मुझ से और जुनूँ से याँ बड़ी जंग होती है देर से

इंशा अल्लाह ख़ान

मुझे छेड़ने को साक़ी ने दिया जो जाम उल्टा

इंशा अल्लाह ख़ान

गली से तेरी जो टुक हो के आदमी निकले

इंशा अल्लाह ख़ान

भले आदमी कहीं बाज़ आ अरे उस परी के सुहाग से

इंशा अल्लाह ख़ान

कर्ब आगही

इंजिला हमेश

उधर जो शख़्स भी आया उसे जवाब हुआ

इनाम कबीर

हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना

इम्तियाज़ साग़र

मुद्दत से आदमी का यही मसअला रहा

इमरान शमशाद

तुझ से इक हाथ क्या मिला लिया है

इमरान आमी

कोई मजनूँ कोई फ़रहाद बना फिरता है

इमरान आमी

ख़ुर्शीद-रुख़ों का सामना है

इमदाद अली बहर

ने आदमी पसंद न इस को ख़ुदा पसंद

इम्दाद आकाश

आदमी

इलियास बाबर आवान

मैं शीशा क्यूँ न बना आदमी हुआ क्यूँकर

इफ़्तिख़ार नसीम

तिरा है काम कमाँ में उसे लगाने तक

इफ़्तिख़ार नसीम

हाथ हाथों में न दे बात ही करता जाए

इफ़्तिख़ार नसीम

यही चराग़ है सब कुछ कि दिल कहें जिस को

इफ़्तिख़ार मुग़ल

कोई वजूद है दुनिया में कोई परछाईं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

मैं जिस को अपनी गवाही में ले के आया हूँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एलान नामा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक सवाल

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बैलन्स-शीट

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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