मैं जिस को अपनी गवाही में ले के आया हूँ
अजब नहीं कि वही आदमी अदू का भी हो
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रौशन दिल वालों के नाम
वही फ़िराक़ की बातें वही हिकायत-ए-वस्ल
हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं
दोस्त क्या ख़ुद को भी पुर्सिश की इजाज़त नहीं दी
ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है
मंसब न कुलाह चाहता हूँ
ग़म-ए-जहाँ को शर्मसार करने वाले क्या हुए
जुनूँ का रंग भी हो शोला-ए-नुमू का भी हो
ये रौशनी के तआक़ुब में भागता हुआ दिन
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
मआल-ए-इज़्ज़त-ए-सादात-ए-इश्क़ देख के हम
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे