आदमी Poetry (page 8)

रेत

सईदुद्दीन

मासूमियत

सईदुद्दीन

लोहे का लिबास

सईदुद्दीन

जब तेज़ भूक लगी हो

सईदुद्दीन

ये इंतिहा-ए-जुनूँ है कि ग़ैर ही सा लगा

सादिक़ इंदौरी

फिर से लहू लहू दर-ओ-दीवार देख ले

सादिक़

ख़ुशबू से हो सका न वो मानूस आज तक

सदफ़ जाफ़री

तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है

सदा अम्बालवी

रक्खे हर इक क़दम पे जो मुश्किल की आगही

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

समझेगा आदमी को वहाँ कौन आदमी

सबा अकबराबादी

भीड़ तन्हाइयों का मेला है

सबा अकबराबादी

पूछें तिरे ज़ुल्म का सबब हम

सबा अकबराबादी

जो देखिए तो करम इश्क़ पर ज़रा भी नहीं

सबा अकबराबादी

अजल होती रहेगी इश्क़ कर के मुल्तवी कब तक

सबा अकबराबादी

ये मत भुला कि यहाँ जिस क़दर उजाले हैं

सअादत बाँदवी

ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की

रियाज़ ख़ैराबादी

ये बला मेरे सर चढ़ी ही नहीं

रियाज़ ख़ैराबादी

वो गुल हैं न उन की वो हँसी है

रियाज़ ख़ैराबादी

ग़रीब हम हैं ग़रीबों की भी ख़ुशी हो जाए

रियाज़ ख़ैराबादी

हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते

रिन्द लखनवी

नक़ाब-ए-रुख़ उठा कर हुस्न जब जल्वा-फ़िगन होगा

रिफ़अत सेठी

तजस्सुस

रिफ़अत सरोश

हम फ़लक के आदमी थे साकिनान-ए-क़र्या-ए-महताब थे

रियाज़ मजीद

बैठे हैं चैन से कहीं जाना तो है नहीं

रहमान फ़ारिस

रंग पर जब वो बज़्म-ए-नाज़ आई

रविश सिद्दीक़ी

कहीं फ़साना-ए-ग़म है कहीं ख़ुशी की पुकार

रविश सिद्दीक़ी

सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे

रौनक़ नईम

उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया

रउफ़ रज़ा

वो ख़ुश-सुख़न तो किसी पैरवी से ख़ुश न हुआ

रऊफ़ ख़ैर

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

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