रंग पर जब वो बज़्म-ए-नाज़ आई
रंग पर जब वो बज़्म-ए-नाज़ आई
हम उठे ले के दर्द-ए-तन्हाई
किस से पूछें तिलिस्म-ए-हस्ती में
हम तमाशा हैं या तमाशाई
था ग़म-ए-इश्क़ जाँ-गुदाज़ मगर
कुछ उसी ग़म ने की मसीहाई
हाए किस सादगी से सीखा है
हुस्न ने एहतिमाम-ए-रानाई
आख़िर-ए-शब ज़बान-ए-शम्अ पे है
दास्तान-ए-हुजूम-ए-तन्हाई
चंद ख़ूनीं-जिगर हुए रुस्वा
मुस्कुराया चमन बहार आई
चुप रहे हम तो ख़ूँ हुआ दिल का
बात की है तो आँख भर आई
हाए इस दौर-ए-अक़्ल-ओ-दानिश ने
कर दिया आदमी को सौदाई
हम चमन में न थे तो ख़ुद ही 'रविश'
बू-ए-गुल दश्त तक चली आई
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