सख़्त जान-लेवा है सादगी मोहब्बत की
ज़हर की कसौटी पर ज़िंदगी को कसती है
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ख़ून-ए-दिल सर्फ़ कर रहा हूँ 'रविश'
तल्ख़ी-ए-ज़िंदगी अरे तौबा
सवाल-ए-इश्क़ पर ता-हश्र चुप रहना पड़ा मुझ को
कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ
बादा-ए-गुल को सब अंदोह-रुबा कहते हैं
रब्त-ए-पिन्हाँ की सदाक़त है न मिलना तेरा
वो कहाँ दर्द जो दिल में तिरे महदूद रहा
वो निकहत-ए-गेसू फिर ऐ हम-नफ़साँ आई
क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम
बुत-गर है न कोई बुत-शिकन है
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ को हम-रिश्ता-ए-जाँ कहता हूँ
ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है