नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं
इशारे हम तिरे ऐ शम-ए-तन्हाई समझते हैं
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उस से बढ़ कर तो कोई बे-सर-ओ-सामाँ न मिला
हुस्न-ए-असनाम ब-हर-लम्हा फ़ुज़ूँ है कि नहीं
कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ
रंग उस महफ़िल-ए-तमकीं में जमाया न गया
कहीं फ़साना-ए-ग़म है कहीं ख़ुशी की पुकार
हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही
अब इस से क्या ग़रज़ ये हरम है कि दैर है
वो कहाँ दर्द जो दिल में तिरे महदूद रहा
इश्क़ दुश्वार नहीं ख़ुश-नज़री मुश्किल है
क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम
पास-ए-वहशत है तो याद-ए-रुख़-ए-लैला भी न कर
तुझ पे खुल जाए कि क्या मेहर को शबनम से मिला