लड़खड़ाना भी है तकमील-ए-सफ़र की तम्हीद
हम को मंज़िल का निशाँ लग़्ज़िश-ए-पैहम से मिला
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शिकस्त-ए-रंग-ए-तमन्ना को अर्ज़-ए-हाल कहूँ
पशेमाँ हैं तर्क-ए-मोहब्बत के बा'द
इल्तिफ़ात-आश्ना हिजाब तिरा
ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है
इश्क़ की शरह-ए-मुख़्तसर के लिए
कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ
एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे
अहद-ओ-पैमाँ कर के पैमाने के साथ
उर्दू जिसे कहते हैं तहज़ीब का चश्मा है
क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ को हम-रिश्ता-ए-जाँ कहता हूँ