इनकार Poetry

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है

फ़हमीदा रियाज़

पहले तो फ़क़त उस का तलबगार हुआ मैं

फ़ीरोज़ाबी नातिक़ ख़ुसरो

बातें करो

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

मैं ज़ेर-ए-लब अपना शजरा-ए-नसब दोहरा रहा था

जवाज़ जाफ़री

मेरे ग़म की तल्ख़ियों का इस से कुछ अंदाज़ा कर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़िंदगी आज़ार थी आज़ार है तेरे बग़ैर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़िंदगी आज़ार थी आज़ार है तेरे बग़ैर

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए

ज़ुबैर रिज़वी

नज़्म

ज़ीशान साहिल

नज़्म

ज़ीशान साहिल

इसी दर से इसी दीवार से आगे नहीं बढ़ता

ज़िशान मेहदी

ज़ब्त-ए-ग़म मुश्किल है और मुश्किल है मुश्किल का जवाब

ज़हीर अहमद ताज

इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाए

ज़फर ज़ैदी

ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

जिस का इंकार हथेली पे लिए फिरता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

अपनी ये शान-ए-बग़ावत कोई देखे आ कर

ज़फ़र इक़बाल

वो एक तरहा से इक़रार करने आया था

ज़फ़र इक़बाल

तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

रुख़-ए-ज़ेबा इधर नहीं करता

ज़फ़र इक़बाल

लर्ज़िश-ए-पर्दा-ए-इज़हार का मतलब क्या है

ज़फ़र इक़बाल

ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता

ज़फ़र इक़बाल

छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया

ज़फ़र इक़बाल

बदला ये लिया हसरत-ए-इज़हार से हम ने

ज़फ़र इक़बाल

अपने इंकार के बर-अक्स बराबर कोई था

ज़फ़र इक़बाल

जैब ओ गरेबाँ टुकड़े टुकड़े दामन को भी तार किया

ज़फ़र अनवर

जान-ए-बे-ताब अजब तेरे ठिकाने निकले

ज़फ़र अज्मी

मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा

यूसुफ़ ज़फ़र

अता-ए-अब्र से इंकार करना चाहिए था

यासमीन हमीद

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