जिस का इंकार हथेली पे लिए फिरता हूँ
जानता ही नहीं इंकार का मतलब क्या है
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अपने सोए हुए सूरज की ख़बर ले जा कर
ख़राबी हो रही है तो फ़क़त मुझ में ही सारी
मुझे ख़राब किया उस ने हाँ किया होगा
बदन का सारा लहू खिंच के आ गया रुख़ पर
कोई किनाया कहीं और बात करते हुए
न उस को भूल पाए हैं न हम ने याद रक्खा है
खुल के रो भी सकूँ और हँस भी सकूँ जी भर के
चमके गा अभी मेरे ख़यालात से आगे
कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे
सफ़र पीछे की जानिब है क़दम आगे है मेरा
कहाँ तक हो सका कार-ए-मोहब्बत क्या बताएँ
सफ़र कठिन ही सही जान से गुज़रना क्या