अपने सोए हुए सूरज की ख़बर ले जा कर
इस कमीं-गाह में किरनों को पकड़ता क्या है
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नहीं कि दिल में हमेशा ख़ुशी बहुत आई
सोचता हूँ कि अपनी रज़ा के लिए छोड़ दूँ
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
हवा के साथ जो इक बोसा भेजता हूँ कभी
सफ़र कठिन ही सही जान से गुज़रना क्या
मिरा मेयार मेरी भी समझ में कुछ नहीं आता
बाहर से चट्टान की तरह हूँ
वो चेहरा हाथ में ले कर किताब की सूरत
दिन चढ़े होना न होना एक सा रह जाएगा
मैं भी कुछ देर से बैठा हूँ निशाने पे 'ज़फ़र'
लर्ज़िश-ए-पर्दा-ए-इज़हार का मतलब क्या है
किस ताज़ा मारके पे गया आज फिर 'ज़फ़र'