पीड़ा Poetry

इक्कीसवीं सदी का इश्क़

मर्यम तस्लीम कियानी

हम को आगही न दो

मर्यम तस्लीम कियानी

सीढ़ियाँ

ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी

राहत-ए-नज़र भी है वो अज़ाब-ए-जाँ भी है

महमूद शाम

आँख हो और कोई ख़्वाब न हो

फ़ारूक़ इंजीनियर

बे-सबात सुब्ह शाम और मिरा वजूद

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर

ज़ुबैर रिज़वी

शिकस्ता ख़्वाब मिरे आईने में रक्खे हैं

ज़ुबैर क़ैसर

शिकस्ता ख़्वाब मिरे आईने में रक्खे हैं

ज़ुबैर क़ैसर

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

ज़ाहिद मुझे न माने-ए-शर्ब-ए-शराब हो

ज़ेबा

बड़े अज़ाब में हूँ मुझ को जान भी है अज़ीज़

ज़ेब ग़ौरी

सितमगरों का तरीक़-ए-जफ़ा नहीं जाता

ज़ेब ग़ौरी

ख़ून के जो रिश्ते थे बन गए अज़ाब-ए-जाँ

ज़मीर अतरौलवी

ग़रीबी नाम है जिस का अज़ाब-ए-जान होती है

ज़मीर अतरौलवी

राहतों के धोके में इज़्तिराब ढूँडे हैं

ज़मीर अतरौलवी

मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा

ज़मान कंजाही

मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा

ज़मान कंजाही

ख़ुद अपनी सोच के पंछी न अपने बस में रहे

ज़मान कंजाही

उम्र गुज़री है कामरानी से

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

तिरे बग़ैर कटे दिन न शब गुज़रती है

ज़की तारिक़

इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा

ज़की तारिक़

बे-मकाँ मेरे ख़्वाब होने लगे

ज़की तारिक़

घटने वाले थे जब अज़ाब मिरे

ज़हरा क़रार

घटने वाले थे जब अज़ाब मरे

ज़हरा क़रार

असीर-ए-ज़ात-ए-रौशनी

ज़हीर सिद्दीक़ी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

मरना अज़ाब था कभी जीना अज़ाब था

ज़हीर काश्मीरी

नक़ाब उस ने रुख़-ए-हुस्न-ए-ज़र पे डाल दिया

ज़फ़र मुरादाबादी

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

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