पीड़ा Poetry (page 8)

रात काटी है जाग कर बाबा

हामिद सरोश

उस के करम से है न तुम्हारी नज़र से है

हमीद अलमास

सरहद-ए-गुल से निकल कर हम जुदा हो जाएँगे

हमीद अलमास

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

हकीम मंज़ूर

हर एक आँख को कुछ टूटे ख़्वाब दे के गया

हकीम मंज़ूर

मौत से पहले जहाँ में चंद साँसों का अज़ाब

हैदर क़ुरैशी

लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं

हैदर क़ुरैशी

यार को मैं ने मुझे यार ने सोने न दिया

हैदर अली आतिश

ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद

हफ़ीज़ जौनपुरी

पिए जा

हफ़ीज़ जालंधरी

अभी तो मैं जवान हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

ये और दौर है अब और कुछ न फ़रमाए

हफ़ीज़ जालंधरी

इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था

हफ़ीज़ बनारसी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

आँधी में बिसात उलट गई है

गुलज़ार बुख़ारी

नज़्म

गोपाल मित्तल

पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे

ग़ुफ़रान अमजद

जज़ीरे हों कि वो सहरा हों ख़्वाब होना है

ग़यास मतीन

सदा ब-सहरा

ग़ालिब अहमद

मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में

ग़ालिब

करम के नाम पे उन का इ'ताब चाहते हैं

फ़ितरत अंसारी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहुत जुमूद था बे-हौसलों में क्या करता

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अच्छा हुआ मैं वक़्त के मेहवर से कट गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सुराग़ भी न मिले अजनबी सदा के मुझे

फ़रियाद आज़र

सबब थी फ़ितरत-ए-इंसाँ ख़राब मौसम का

फ़रियाद आज़र

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