पीड़ा Poetry (page 2)

तिरे क़रीब रहूँ या कि मैं सफ़र में रहूँ

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

ग़म इतने अपने दामन-ए-दिल से लिपट गए

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

कितनी हसीन लगती है चेहरों की ये किताब

यूसुफ़ आज़मी

पढ़ चुके हैं निसाब-ए-तंहाई

यशब तमन्ना

मुशाहिदा न कोई तजरबा न ख़्वाब कोई

याक़ूब राही

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था

वज़ीर आग़ा

भूत

वज़ीर आग़ा

थी नींद मेरी मगर उस में ख़्वाब उस का था

वज़ीर आग़ा

कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है

वसीम बरेलवी

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वली उज़लत

ज़ोहरा सुहैल शम्स ख़ुर बद्र बहा तू कौन है

वाजिद अली शाह अख़्तर

ज़माने फिर नए साँचे में ढलने वाला है

वहीद क़ुरैशी

ग़म के हाथों शुक्र-ए-ख़ुदा है इश्क़ का चर्चा आम नहीं

वहीद क़ुरैशी

क्या कहें क्या लिखें

वहीद अहमद

आख़िर वो इज़्तिराब के दिन भी गुज़र गए

वारिस किरमानी

सबा से आती है कुछ बू-ए-आश्ना मुझ को

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ

उमैर मंज़र

नज़र उठा दिल-ए-नादाँ ये जुस्तुजू क्या है

तिलोकचंद महरूम

हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया

तिलोकचंद महरूम

मिरे चारा-गर तुझे क्या ख़बर, जो अज़ाब-ए-हिज्र-ओ-विसाल है

तसनीम आबिदी

क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में

मीर तस्कीन देहलवी

मैं हबीब हूँ किसी और का मिरी जान-ए-जाँ कोई और है

तारिक़ मतीन

वही आहटें दर-ओ-बाम पर वही रत-जगों के अज़ाब हैं

तारिक़ बट

दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत

तनवीर अंजुम

दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत

तनवीर अंजुम

अभी तो आँखों में ना-दीदा ख़्वाब बाक़ी हैं

तनवीर अहमद अल्वी

उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे

तैमूर हसन

तो तय हुआ ना कि जब भी लिखना रुतों के सारे अज़ाब लिखना

ताहिर तोनस्वी

ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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