पीड़ा Poetry (page 4)

बहुत घुटन है बहुत इज़्तिराब है मौला

शमीम फ़ारूक़ी

निगाह ओ दिल के तमाम रिश्ते फ़ज़ा-ए-आलम से कट गए हैं

शकील जाज़िब

देख इन आँखों से क्या जल-थल कर रक्खा है

शहज़ाद क़मर

एतराफ़

शहरयार

ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है

शहरयार

हुजूम-ए-दर्द मिला ज़िंदगी अज़ाब हुई

शहरयार

भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया

शहरयार

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

शहनाज़ मुज़म्मिल

मिरे ख़ुदा कोई छाँव कोई ज़मीं कोई घर

शहनवाज़ ज़ैदी

इक अज़ाब होता है रोज़ जी का खोना भी

शाहिद लतीफ़

भर गए ज़ख़्म तो क्या दर्द तो अब भी कोई है

शाहिद कमाल

तिरी थकी हुई आँखों में ख़्वाब था कि नहीं

शाहिद कलीम

न ख़ुदा है न नाख़ुदा है कोई

शाहिद इश्क़ी

मुब्तला रूह के अज़ाब में हूँ

शाहिद इश्क़ी

वो बे-नियाज़ शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल गया

शाहिद अहमद शोएब

मचलते रहते हैं बिस्तर पे ख़्वाब मेरे लिए

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

कड़े हैं हिज्र के लम्हात उस से कह देना

शहबाज़ ख़्वाजा

पामाल-ए-राह-ए-इश्क़ हैं ख़िल्क़त की खा ठोकर भी हम

शाह नसीर

सवाल करता नहीं और जवाब उस की तलब

शफ़ीक़ सलीमी

सारी ताबीरें हैं उस की सारे ख़्वाब उस के लिए

शफ़ीक़ सलीमी

गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहर

शफ़ीक़ सलीमी

क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और

शाद लखनवी

तन्हा खड़े हैं हम सर-ए-बाज़ार क्या करें

शबनम शकील

हवा को और भी कुछ तेज़ कर गए हैं लोग

शायर लखनवी

जहान-ए-दिल में हुए इंक़लाब और ही कुछ

शानुल हक़ हक़्क़ी

सरों पे धूप तो आँखों में ख़्वाब पत्थर के

सय्यद सफ़ी हसन

चेहरे पे न ये नक़ाब देखा

मोहम्मद रफ़ी सौदा

अजाइब-ख़ाना

सरवत ज़ेहरा

सवाल-अंदर-सवाल ले कर कहाँ चले हो

सरवत ज़ेहरा

सर-कशी को जब हम ने हम-रिकाब रखना है

सरवर अरमान

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