पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब
गर्म-जोशी से है कबाब शराब
मरयमी उड़ गई मसीहा की
लब-ए-नाज़ुक पे है शराब शराब
उस से हम जा भिड़े अदू के घर
है पड़ी ख़ानुमाँ-ख़राब शराब
क्यूँ कि मुतलक़ हराम ही कहिए
पीजिएगा मिला के आब शराब
बहर-ए-हर-ज़र्फ़-ए-इम्तिहाँ साग़र
हर तमन्ना का इंतिख़ाब शराब
बअ'द-अज़ीं मोहतसिब क़सम ले ले
तौबा करता हूँ ला शिताब शराब
ज़ाएअ' औक़ात को नहीं करते
पीते हैं वक़्त-ए-माहताब शराब
सख़्त मातम है ऐ शबाब तिरा
कि रुलाती है ख़ून-ए-नाब शराब
मोहतसिब उस का ख़ून है किस पर
जो है पीता बजाए आब शराब
मुसहफ़-ओ-ख़िर्क़ा बेचते हैं हम
हो गई जान को अज़ाब शराब
उस की बख़्शिश है बे-हिसाब अगर
हम भी पीते हैं बे-हिसाब शराब
हर घड़ी ज़िक्र-ए-मय है ऐ वाइ'ज़
हो गई तेरी तो किताब शराब
ऐ 'क़लक़' मय-कदे में सज्दे क्यूँ
कौन देगा प-ए-सवाब शराब
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