शमशेर Poetry

चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद

अहमद नदीम क़ासमी

क्यूँ हो न गिर के कासा-ए-तदबीर पाश पाश

ज़ेबा

धो के तू मेरा लहू अपने हुनर को न छुपा

ज़ेब ग़ौरी

मैं छू सकूँ तुझे मेरा ख़याल-ए-ख़ाम है क्या

ज़ेब ग़ौरी

लगाऊँ हाथ तुझे ये ख़याल-ए-ख़ाम है क्या

ज़ेब ग़ौरी

बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

इंक़लाब-ए-हिन्द

ज़फ़र अली ख़ाँ

तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को

योगेन्द्र बहल तिश्ना

ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने

यगाना चंगेज़ी

मुदावा

वामिक़ जौनपुरी

बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के

वली उज़लत

मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के

वली मोहम्मद वली

ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत

वाहिद प्रेमी

दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका

उमैर नजमी

मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए

तौक़ीर तक़ी

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

ख़्वाब तो ख़्वाब है ता'बीर बदल जाती है

तनवीर अहमद अल्वी

वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

बर-सर-ए-लुत्फ़ आज चश्म-ए-दिल-रुबा थी मैं न था

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

आशिक़-ए-हक़ हैं हमीं शिकवा-ए-तक़दीर नहीं

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

नोक-ए-शमशीर की घात का सिलसिला यूँ पस-ए-आइना कल उतारा गया

सूरज नारायण

मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है

सुल्तान अख़्तर

काम आती नहीं अब कोई तदबीर हमारी

सुल्तान अख़्तर

आरज़ूओं को अना-गीर नहीं कर सकते

सिया सचदेव

दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा

सिराज औरंगाबादी

कल सीं बे-कल है मिरा जी यार कूँ देखा न था

सिराज औरंगाबादी

जलव-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखाता रह

सिराज औरंगाबादी

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