शमशेर Poetry (page 5)

जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए

ग़ालिब

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का

ग़ालिब

माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं

ग़ालिब

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

ग़ालिब

अज़-मेहर ता-ब-ज़र्रा दिल-ओ-दिल है आइना

ग़ालिब

ये नर्म नर्म हवा झिलमिला रहे हैं चराग़

फ़िराक़ गोरखपुरी

बिजलियाँ टूट पड़ीं जब वो मुक़ाबिल से उठा

फ़ानी बदायुनी

ये किस दयार-ए-अदम में...

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मदह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ब-नोक-ए-शमशीर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिटा के तीरगी तनवीर चाहता है दिल

फ़ैय्याज़ रश्क़

''ला'' भी है एक गुमाँ

फ़हीम शनास काज़मी

सजन मुझ पर बहुत ना-मेहरबाँ है

फ़ाएज़ देहलवी

ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो

एज़ाज़ अफ़ज़ल

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का

दाग़ देहलवी

मिल चुका महफ़िल में अब लुत्फ़-ए-शकेबाई मुझे

बिस्मिल इलाहाबादी

फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

इक गर्दिश-ए-मुदाम भी तक़दीर में रही

भारत भूषण पन्त

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

क़स्र-ए-जानाँ तक रसाई हो किसी तदबीर से

बेदम शाह वारसी

हक़ पसंदों से जहाँ बर-सर-ए-पैकार सही

बेबाक भोजपुरी

तेग़ चढ़ उस की सान पर आई

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

हिन्द के जाँ-बाज़ सिपाही

बर्क़ देहलवी

हाँ मियाँ सच है तुम्हारी तो बला ही जाने

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

मिरे हर लफ़्ज़ की तौक़ीर रहने के लिए है

बख़्श लाइलपूरी

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

पान खा कर सुर्मा की तहरीर फिर खींची तो क्या

ज़फ़र

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