जब बाप मुआ तो फिर है बेटा क्या शय
आगे पीछे धरें हैं सब के लाशे
दुनिया है 'क़लक़' कुछ तो यही कुछ है बस
हर चीज़ है ना-चीज़ तो हर शय ला-शय
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अश्क के गिरते ही आँखों में अंधेरा छा गया
जाँ जाए पर उम्मीद न जाएगी कभी
दयार-ए-यार का शायद सुराग़ लग जाता
है मेहर-ए-करम गुनाह-गारी मेरी
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है
ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट
जो जा के न आए फिर जवानी है ये शय
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो
कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है
रहम कर मस्तों पे कब तक ताक़ पर रक्खेगा तू
नासेह की शिकायत वही ज़ख़्म-ए-जाँ है
न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है