न हो आरज़ू कुछ यही आरज़ू है
फ़क़त मैं ही मैं हूँ तो फिर तू ही तू है
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ज़हे क़िस्मत कि उस के क़ैदियों में आ गए हम भी
थक थक गए हैं आशिक़ दरमांदा-ए-फ़ुग़ाँ हो
मैं राज़दाँ हूँ ये कि जहाँ था वहाँ न था
ग़ैर शायान-ए-रस्म-ओ-राह नहीं
तेरे वादे का इख़्तिताम नहीं
जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले
नक़्श-बर-आब नाम है सैल-ए-फ़ना मक़ाम
ख़ुर्शीद पे जिस वक़्त ज़वाल आता है
लो जाइए बस ख़ुदा हमारा हाफ़िज़
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो
अफ़्साना-ए-यार बहर-ए-वसलत है लज़ीज़
हर संग में काबे के निहाँ इश्वा-ए-बुत है