न लगती आँख तो सोने में क्या बुराई थी
ख़बर कुछ आप की होती तो बे-ख़बर होता
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गाहे तो करम हम पे भी फ़रमाएँ आप
है मेहर-ए-करम गुनाह-गारी मेरी
दुनिया का तमाम कारख़ाना है अबस
आप के महरम असरार थे अग़्यार कि हम
अम्न और तेरे अहद में ज़ालिम
रिश्ता-ए-रस्म-ए-मोहब्बत मत तोड़
लाज़िम है कि फ़िक्र-ए-रुख़-ए-दिलबर छोड़ूँ
बानो ने कहा क़तरा नहीं शीर का है
किस तरह कहूँ आ भी कहीं उज़्र न कर
ख़ुद को कभी न देखा आईने ही को देखा
क्या कहें तुझ से हम वफ़ा क्या है
वो वक़्त-ए-शबाब वो ज़माना न रहा