चुपचाप Poetry

रिवायती मोहब्बत

ममता तिवारी

देख कर वहशत निगाहों की ज़बाँ बेचैन है

गौतम राजऋषि

अलाव

बलराज कोमल

ये दर-ओ-दीवार पर बे-नाम से चुप-चाप साए

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं

ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

हम कहाँ आ गए

ज़ुबैर रिज़वी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

सुब्ह से शाम तक

ज़िया जालंधरी

आँसू

ज़िया जालंधरी

डरो उस वक़्त से

ज़ेहरा निगाह

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए

ज़ेहरा निगाह

रात का हुस्न भला कब वो समझता होगा

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए

ज़की काकोरवी

नश्र मुकर्रर

ज़ाहिद मसूद

दार-उल-अमान के दरवाज़े पर

ज़ाहिद मसूद

कल रात बहुत ज़ोर था साहिल की हवा में

ज़ाहिद मसूद

कुछ सबब ही न बने बात बढ़ा देने का

ज़फ़र इक़बाल

किसी नई तरहा की रवानी में जा रहा था

ज़फ़र इक़बाल

सारी उम्र गँवा दी हम ने

वज़ीर आग़ा

आवेज़िश

वज़ीर आग़ा

पत्थरों का मुग़न्नी

वहीद अख़्तर

आती जाती लहरें

वली मदनी

दिल की जो आग थी कम उस को भी होने न दिया

उमा शंकर चित्रवंशी बाज़ल

जाने फिर उस के दिल में क्या बात आ गई थी

त्रिपुरारि

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं

तौक़ीर तक़ी

अब ख़ाना-ब-दोशों का पता है न ख़बर है

तस्लीम इलाही ज़ुल्फ़ी

मैं उस की मोहब्बत से इक दिन भी मुकर जाता

ताहिर अज़ीम

मुझ को तन्हा जो पा रही है रात

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

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