चुपचाप Poetry (page 3)

तेरी आवाज़

साहिर लुधियानवी

इसी दो-राहे पर

साहिर लुधियानवी

ख़ुद को ख़ुद में तहलील करो

साहिल अहमद

ओस की तमन्ना में जैसे बाग़ जलता है

सफ़दर मीर

शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

तुम्हीं बताओ वो कौन है जो हर एक लम्हा सता रहा है

रज़िया हलीम जंग

मैं ने सोचा था इस अजनबी शहर में ज़िंदगी चलते-फिरते गुज़र जाएगी

रसा चुग़ताई

दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

टूटी हुई दीवार की तक़दीर बना हूँ

राज नारायण राज़

जब शाख़-ए-तमन्ना पे कोई फूल खिला है

इक़बाल मिनहास

लोग न जाने कैसी कैसी बातें करते हैं

इंतिख़ाब सय्यद

शोर से बच कर सहमा सहमा बैठा है चुप-चाप

इंतिख़ाब सय्यद

बैठ जाता था मैं थक कर अपने तन की छाँव में

इंतिख़ाब अालम

अन-छूई कथा

इंजील सहीफ़ा

सीप मुट्ठी में है आफ़ाक़ भी हो सकता है

इंजील सहीफ़ा

रास्ते जिस तरफ़ बुलाते हैं

इनाम नदीम

जी में ठानी है कि जीना है बहर-हाल मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

हाथ हाथों में न दे बात ही करता जाए

इफ़्तिख़ार नसीम

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

इदरीस बाबर

शम्अ के मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़

हिमायत अली शाएर

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

वो भी चुप-चाप है इस बार ये क़िस्सा क्या है

हस्तीमल हस्ती

लोग सुब्ह ओ शाम की नैरंगियाँ देखा किए

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

एक लड़की शादाँ

हफ़ीज़ जालंधरी

तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसों

हबीब जालिब

औरत

हबीब जालिब

एक और रात

गुलज़ार

दर्द

गुलनाज़ कौसर

यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है

ग़ज़नफ़र

इतवार की दोपहर

गीताञ्जलि राय

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