तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसों
साँचे में हर इक ग़म के चुप-चाप ढली बरसों
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सहाफ़ी से
तेज़ चलो
दस्तूर
तिरे माथे पे जब तक बल रहा है
दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा
उस ने जब हँस के नमस्कार किया
सच ही लिखते जाना
उट्ठो मरने का हक़ इस्तिमाल करो
तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है
इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें
सलाम लोगो
यौम-ए-मई