पा सकेंगे न उम्र भर जिस को
जुस्तुजू आज भी उसी की है
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दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो
कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
लोग गीतों का नगर याद आया
मुशीर
बहुत रौशन है शाम-ए-ग़म हमारी
महताब-सिफ़त लोग यहाँ ख़ाक-बसर हैं
ज़ुल्फ़ की बात किए जाते हैं
दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें
दिल-ए-पुर-शौक़ को पहलू में दबाए रक्खा
सहाफ़ी से
दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले