कोनों Poetry

लज़्ज़त-ए-हिज्र ने तड़पाया बहुत रुस्वा किया

नसीम शेख़

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

लोग कहते हैं यहाँ एक हसीं रहता था

ज़ुबैर फ़ारूक़

बरसों हुए तुम कहीं नहीं हो

ज़ेहरा निगाह

किस शेर में सना-ए-रुख़-ए-मह-जबीं नहीं

ज़ेबा

नज़र में कैसा मंज़र बस गया है

ज़मान कंजाही

हिकायत-ए-गुरेज़ाँ

ज़ाहिदा ज़ैदी

कुछ यक़ीं रहने दिया कुछ वाहिमा रहने दिया

ज़ाहिद अाफ़ाक

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ

ज़फ़र इक़बाल

मिस्र में हुस्न की वो गर्मी-ए-बाज़ार कहाँ

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

तिरी नज़र में तिरे मा-सिवा नहीं होगा

वक़ार वासिक़ी

शाम के दिन रात

वहीद अहमद

थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं

वहाब दानिश

अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं

त्रिपुरारि

दर्द जब से दिल-नशीं है इश्क़ है

तौक़ीर तक़ी

अब नए रुख़ से हक़ाएक़ को उलट कर देखो

तारिक़ बट

जी में आता है कि चल कर जंगलों में जा रहें

ताज सईद

मिट गए हाए मकीं और मकान-ए-देहली

तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी

अजब नहीं कि हो दीवार नुक़्ता-ए-मौहूम

सय्यद अमीन अशरफ़

ख़ाकसारों से क़रीं रहता है

सय्यद अमीन अशरफ़

फ़साद-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र हासिल-ए-तमाशा देख

सय्यद अमीन अशरफ़

झूट रौशन है कि सच्चाई नहीं जानते हैं

सुल्तान अख़्तर

याद आती है तिरी यूँ मिरे ग़म-ख़ाने में

सुदर्शन कुमार वुग्गल

नाख़ुदा हो कि ख़ुदा देखते रह जाते हैं

सिद्दीक़ मुजीबी

दिल ही गिर्दाब-ए-तमन्ना है यहीं डूबते हैं

सिद्दीक़ मुजीबी

अबस है दूरी का उस के शिकवा बग़ल में अपने वो दिल-रुबा है

श्याम सुंदर लाल बर्क़

ये मकीं क्या ये मकाँ सब ला-मकाँ का खेल है

शुजाअत इक़बाल

आज देखा जो कोई शख़्स दीवाना मिरे दोस्त

शुजाअत इक़बाल

इन को देखा था कहीं याद नहीं

शोहरत बुख़ारी

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