बज़्म Poetry

नहीं कि ज़िंदा है बस एक मेरी ज़ात में इश्क़

एज़ाज़ काज़मी

तिरे ख़याल के बादल उतर के आए हैं

तरुणा मिश्रा

चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला

अनवर अंजुम

'मजाज़' की मौत पर

द्वारका दास शोला

कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगा

ए जी जोश

जो सकूँ न रास आया तो मैं ग़म में ढल रहा हूँ

अख़्तर आज़ाद

अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है

हबीब जालिब

किस तवक़्क़ो' पे शरीक-ए-ग़म-ए-याराँ होंगे

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

दिन ऐसे यूँ तो आए ही कब थे जो रास थे

ज़ुहूर नज़र

ख़ुर्शीद की बेटी कि जो धूपों में पली है

ज़ुबैर रिज़वी

वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया

ज़ुबैर अली ताबिश

वो भरी बज़्म में कहती है मुझे अंकल-जी

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

सर-ए-बज़्म मुझ को उठा दिया मुझे मार मार लिटा दिया

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

मैं शिकार हूँ किसी और का मुझे मारता कोई और है

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

कूचा-ए-यार में मैं ने जो जबीं-साई की

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

ज़िया जालंधरी

कितने इम्काँ थे जो ख़्वाबों के सहारे देखे

ज़िया जालंधरी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी

ज़िया जालंधरी

कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए

ज़ेहरा निगाह

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

कोई हंगामा सर-ए-बज़्म उठाया जाए

ज़ेहरा निगाह

हर आन सितम ढाए है क्या जानिए क्या हो

ज़ेहरा निगाह

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का

ज़ेबा

इस बज़्म-ए-तसव्वुर में बस यार की बातें हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

क्या कहें हम थे कि या दीदा-ए-तर बैठ गए

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

ख़ाक पर ही मिरे आँसू हैं न दामन में कहीं

ज़ेब उस्मानिया

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