बज़्म Poetry (page 38)

जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो

अहमद फ़राज़

दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए

अहमद फ़राज़

बैठे थे लोग पहलू-ब-पहलू पिए हुए

अहमद फ़राज़

इश्क़ में हो के मुब्तिला दिल ने कमाल कर दिया

अहमद अज़ीम

गए दिनों की रक़ाबत को वो भुला न सके

अहमद अशफ़ाक़

उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी हवस में जो दिल से पूछा निकल के घर से किधर को चलिए

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरी गली में जो धूनी रमाए बैठे हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

तिरे वास्ते जान पे खेलेंगे हम ये समाई है दिल में ख़ुदा की क़सम

आग़ा हज्जू शरफ़

तलाश-ए-क़ब्र में यूँ घर से हम निकल के चले

आग़ा हज्जू शरफ़

रुलवा के मुझ को यार गुनहगार कर नहीं

आग़ा हज्जू शरफ़

रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है

आग़ा हज्जू शरफ़

मौसम-ए-गुल में जो घिर घिर के घटाएँ आईं

आग़ा हज्जू शरफ़

जब से हुआ है इश्क़ तिरे इस्म-ए-ज़ात का

आग़ा हज्जू शरफ़

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया

आग़ा हज्जू शरफ़

जो दर्द-ए-दिल कहो आहिस्ता बोलो

अफ़ज़ल परवेज़

घर ग़ैर के जो यार मिरा रात से गया

आफ़ताब शाह आलम सानी

आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है

अफ़ीफ़ सिराज

दुम

आदिल लखनवी

उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए

अदीम हाशमी

बला-ए-जाँ थी जो बज़्म-ए-तमाशा छोड़ दी मैं ने

अबु मोहम्मद सहर

सब की आँखों में जो समाया था

अबु मोहम्मद सहर

इलाही क्या कभी पूरे ये अरमाँ हो भी सकते हैं

अबरार शाहजहाँपुरी

तुम्हारी बज़्म में जिस बात का भी चर्चा था

अबरार आज़मी

यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम

अबरार अहमद

नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था

अब्दुल्लाह जावेद

तुम्हारी चश्म ने मुझ सा न पाया

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

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