बज़्म Poetry (page 2)

नियाज़-ओ-नाज़ के साग़र खनक जाएँ तो अच्छा है

ज़ेब बरैलवी

इस अदा से इश्क़ का आग़ाज़ होना चाहिए

ज़ेब बरैलवी

नज़र को वुसअतें दे बिजलियों से आश्ना कर दे

ज़हीर अहमद ताज

ऐ मिरी जान-ए-आरज़ू माने-ए-इल्तिफ़ात क्या

ज़हीर अहमद ताज

तपिश से फिर नग़्मा-ए-जुनूँ की सुरूद-ओ-चंग-ओ-रबाब टूटे

ज़ाहिदा ज़ैदी

मारा हमें इस दौर की आसाँ-तलबी ने

ज़ाहिदा ज़ैदी

कहाँ तक काविश-ए-इसबात-ए-पैहम

ज़ाहिदा ज़ैदी

वो बहर-ओ-बर में नहीं और न आसमाँ में है

ज़ाहिद चौधरी

वो आफ़्ताब में है और न माहताब में है

ज़ाहिद चौधरी

नहीं ये रस्म-ए-मोहब्बत कि इश्तिबाह करो

ज़ाहिद चौधरी

जब आशिक़ी में मेरा कोई राज़-दाँ नहीं

ज़ाहिद चौधरी

चला हूँ घर से मैं अहवाल-ए-दिल सुनाने को

ज़ाहिद चौधरी

दर्द तो ज़ख़्म की पट्टी के हटाने से उठा

ज़हीर सिद्दीक़ी

वो बज़्म से निकाल के कहते हैं ऐ 'ज़हीर'

ज़हीर काश्मीरी

जब ख़ामुशी ही बज़्म का दस्तूर हो गई

ज़हीर काश्मीरी

वो इक झलक दिखा के जिधर से निकल गया

ज़हीर काश्मीरी

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

मैं हूँ वहशत में गुम मैं तेरी दुनिया में नहीं रहता

ज़हीर काश्मीरी

लौह-ए-मज़ार देख के जी दंग रह गया

ज़हीर काश्मीरी

हैं बज़्म-ए-गुल में बपा नौहा-ख़्वानियाँ क्या क्या

ज़हीर काश्मीरी

दिल मर चुका है अब न मसीहा बना करो

ज़हीर काश्मीरी

अब है क्या लाख बदल चश्म-ए-गुरेज़ाँ की तरह

ज़हीर काश्मीरी

रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया

ज़हीर देहलवी

रहता तो है उस बज़्म में चर्चा मिरे दिल का

ज़हीर देहलवी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

गुल हुआ ये किस की हस्ती का चराग़

ज़हीर देहलवी

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

हर्फ़-ए-तदबीर न था हर्फ़-ए-दिलासा रौशन

ज़फ़र मुरादाबादी

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