बज़्म Poetry (page 4)

ऐ हम-नफ़स उस ज़ुल्फ़ के अफ़्साने को मत छेड़

वलीउल्लाह मुहिब

मुझ क़ब्र से यार क्यूँके जावे

वली उज़लत

मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ

वली मोहम्मद वली

ज़ोहरा सुहैल शम्स ख़ुर बद्र बहा तू कौन है

वाजिद अली शाह अख़्तर

सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा

वाजिद अली शाह अख़्तर

ऐ नसीम-ए-सहरी हम तो हवा होते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हक़ बात सर-ए-बज़्म भी कहने में तअम्मुल

वाहिद प्रेमी

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

परोमीथियस

वहीद अख़्तर

ज़बान-ए-ख़ल्क़ पे आया तो इक फ़साना हुआ

वहीद अख़्तर

रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले

वहीद अख़्तर

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

वहीद अख़्तर

तन्हाई मुझे देखती है

वहीद अहमद

आग दरिया को इशारों से लगाने वाला

विशाल खुल्लर

फ़र्ज़-ए-सुपुर्दगी में तक़ाज़े नहीं हुए

विपुल कुमार

जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी

वारिस किरमानी

इश्क़ के हाथों में परचम के सिवा कुछ भी नहीं

उरूज ज़ैदी बदायूनी

ये किस से आज बरहम हो गई है

तिलोकचंद महरूम

वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया

तिलोकचंद महरूम

ख़िज़ाँ से पेशतर सारा चमन बर्बाद होता है

तिलोकचंद महरूम

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