बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में
कि रुख़्सत हो गया उस का हिजाब आहिस्ता आहिस्ता
Rahat Indori
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दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
मजाल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत न एक बार हुई
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
तुम्हारा मुद्दआ ही जब समझ में कुछ नहीं आया
तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़