ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
हमारी बेकसी को देख कर सारा जहाँ रोया
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Faiz Ahmad Faiz
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सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने ज़रा
हम ने आलम से बेवफ़ाई की
मजाल-ए-तर्क-ए-मोहब्बत न एक बार हुई
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
बेजा है तिरी जफ़ा का शिकवा