पता Poetry

लापता

मुबश्शिर अली ज़ैदी

अब तक तो यही पता नहीं है

बिमल कृष्ण अश्क

हम को ख़ुलूस-ए-दिल का किसी ने सिला दिया है

अनवर ख़लील

कितनी शिद्दत से तुझे चाहा था

महमूद शाम

हिज्र

हारिस ख़लीक़

पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

तन्हा

ज़िया जालंधरी

पैग़ाम

ज़िया जालंधरी

दिखावा

ज़िया जालंधरी

आज ही महफ़िल सर्द पड़ी है आज ही दर्द फ़रावाँ है

ज़िया जालंधरी

यूँ हसरतों की गर्द में था दिल अटा हुआ

ज़िया फ़तेहाबादी

मैं जब भी तिरे शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार से निकला

ज़िया फ़ारूक़ी

अपने होने का हर इक लम्हा पता देती हुई

ज़िया फ़ारूक़ी

एक लड़की

ज़ेहरा निगाह

फ़ाइरिंग

ज़ीशान साहिल

दहशत-गर्द शायर

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को

ज़ीशान साहिल

काम इतने हैं कि आराम नहीं जानते हैं

ज़ीशान साजिद

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

न अब्र से तिरा साया न तू निकलता है

ज़ेब ग़ौरी

दिल का मौसम ज़र्द हो तो कुछ भला लगता नहीं

ज़मीर अज़हर

किसी भी शाख़ पर पत्ता नहीं है

ज़मान कंजाही

तिरी यादों ने तन्हा कर दिया है

ज़मान कंजाही

रखी न गई दिल में कोई बात छुपा कर

ज़हरा क़रार

वो हमें राह में मिल जाएँ ज़रूरी तो नहीं

ज़ाहिदा ज़ैदी

रंग जमने न दिया बात को चलने न दिया

ज़हीर देहलवी

वो मुझ से अपना पता पूछने को आ निकले

ज़फ़र इक़बाल

उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले

ज़फ़र इक़बाल

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