पता Poetry (page 8)

सर्व में रंग है कुछ कुछ तिरी ज़ेबाई का

इमदाद अली बहर

नहीं होने का ये ख़ून-ए-जिगर बंद

इमदाद अली बहर

जल्वा-ए-अर्बाब-ए-दुनिया देखिए

इमदाद अली बहर

आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला

इमदाद अली बहर

आहों से होंगे गुम्बद-ए-हफ़्त-आसमाँ ख़राब

इमदाद अली बहर

मेरा और फूलों का रिश्ता टूट गया

इलियास बाबर आवान

मंज़िलों का मैं पता भी दूँगा

इकराम तबस्सुम

मुज़्तरिब आप के बिना है जी

इफ़्तिख़ार राग़िब

वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी

अगर वो मिल के बिछड़ने का हौसला रखता

इफ़्फ़त ज़र्रीं

किसी के हाथ कहाँ ये ख़ज़ाना आता है

इदरीस बाबर

क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता

इब्न-ए-रज़ा

कर बुरा तो भला नहीं होता

इब्न-ए-मुफ़्ती

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

फिर अँधेरी राह में कोई दिया मिल जाएगा

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

वो बद-दुआ उसे समझे अगर दुआ लिक्खूँ

हयात लखनवी

ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है

हातिम अली मेहर

मैं ने उस को बर्फ़ दिनों में देखा था

हसन रिज़वी

कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया

हसन नईम

दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे

हसन नईम

दश्त में फूल खिला रक्खा है

हसन जमील

कलियों का तबस्सुम हो, कि तुम हो कि सबा हो

हरी चंद अख़्तर

जानता उस को हूँ दवा की तरह

हक़ीर

रात के दर पे ये दस्तक ये मुसलसल दस्तक

हनीफ़ फ़ौक़

ये सानेहा भी बड़ा अजब है कि अपने ऐवान-ए-रंग-ओ-बू में

हनीफ़ अख़गर

ज़बाँ के साथ यहाँ ज़ाइक़ा भी रक्खा है

हमदम कशमीरी

हुआ है सामने आँखों के ख़ानदाँ आबाद

हमदम कशमीरी

एक क़तरा न कहीं ख़ूँ का बहा मेरे बअ'द

हमदम कशमीरी

मेरे सामने मेरे घर का पूरा नक़्शा बिखरा है

हकीम मंज़ूर

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