पता Poetry (page 2)

तिरे लबों पे अगर सुर्ख़ी-ए-वफ़ा ही नहीं

ज़फ़र इक़बाल

परियों ऐसा रूप है जिस का लड़कों ऐसा नाँव

ज़फ़र इक़बाल

इल्ज़ाम एक ये भी उठा लेना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

हम ने आवाज़ न दी बर्ग ओ नवा होते हुए

ज़फ़र इक़बाल

है कोई इख़्तियार दुनिया पर

ज़फ़र इक़बाल

दिल को रहीन-ए-बंद-ए-क़बा मत किया करो

ज़फ़र इक़बाल

बस एक बार किसी ने गले लगाया था

ज़फ़र इक़बाल

करम नहीं तो सितम ही सही रवा रखना

यासीन क़ुदरत

ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस

यगाना चंगेज़ी

हथेली

वज़ीर आग़ा

हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल

वसीम बरेलवी

तुम्हें ग़मों का समझना अगर न आएगा

वसीम बरेलवी

तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को

वसीम बरेलवी

कहाँ सवाब कहाँ क्या अज़ाब होता है

वसीम बरेलवी

जो तुझे और मुझे एक कर सका नहीं

वक़ार ख़ान

बरसों बा'द मिला तो उस ने हम से पूछा कैसे हो

वक़ार फ़ातमी

गर्द-बाद अफ़्सोस का जंगल से है पैदा हनूज़

वली उज़लत

अब नींद कहाँ आँखों में शोला सा भरा है

वकील अख़्तर

देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

बे-बरसे गुज़र जाते हैं उमडे हुए बादल

वहीद अख़्तर

दीवानों को मंज़िल का पता याद नहीं है

वहीद अख़्तर

मुद्दतें हो गईं हिसाब किए

विकास शर्मा राज़

ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर

विकास शर्मा राज़

दिल-खंडर में खड़े हुए हैं हम

विकास शर्मा राज़

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

विजय शर्मा अर्श

मोहब्बत का घर

वर्षा गोरछिया

लाख नादाँ हैं मगर इतनी सज़ा भी न मिले

वारिस किरमानी

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

भटकें हैं आप के लिए तन्हा कहाँ कहाँ

तरुणा मिश्रा

ख़िज़ाँ-नसीबों पे बैन करती हुई हवाएँ

तारिक़ क़मर

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