पता Poetry (page 4)

जब तिरा आसरा नहीं मिलता

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

ज़ौक़

चश्म-ए-क़ातिल हमें क्यूँकर न भला याद रहे

ज़ौक़

बाग़-ए-आलम में जहाँ नख़्ल-ए-हिना लगता है

ज़ौक़

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

शाज़ तमकनत

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

शाज़ तमकनत

कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह

शाज़ तमकनत

शब-हाए-ऐश का वो ज़माना किधर गया

शौक़ देहलवी मक्की

रोता हुआ बकरा

शारिक़ कैफ़ी

फ़क़त हिस्से की ख़ातिर

शारिक़ कैफ़ी

उदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ है

शारिक़ कैफ़ी

कभी ख़ुद को छूकर नहीं देखता हूँ

शारिक़ कैफ़ी

अपनी आँखों पर वो नींदों की रिदा ओढ़े हुए

शारिब मौरान्वी

माह-ए-मुनीर

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

बे-ज़बाँ भी तो बता देता है मंज़िल का पता

शम्स रम्ज़ी

ये अर्ज़-ओ-समा क़ुलज़ुम-ओ-सहरा मुतहर्रिक

शम्स रम्ज़ी

बंद कर के खिड़कियाँ यूँ रात को बाहर न देख

शमीम हनफ़ी

बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था

शमीम अब्बास

कोई भी दार से ज़िंदा नहीं उतरता है

शकील जमाली

शहर का शहर जानता है मुझे

शकील ग्वालिआरी

रूह से कब ये जिस्म जुदा है

शकील ग्वालिआरी

न इतनी तेज़ चले सर-फिरी हवा से कहो

शकेब जलाली

जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है

शकेब जलाली

हैराँ हूँ हासिदों को पता कैसे चल गया

शहज़ाद अहमद

दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था

शहज़ाद अहमद

ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक

शहज़ाद अहमद

जो शजर सूख गया है वो हरा कैसे हो

शहज़ाद अहमद

इश्क़ वहशी है जहाँ देखेगा

शहज़ाद अहमद

दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया

शहज़ाद अहमद

भटकती हैं ज़माने में हवाएँ

शहज़ाद अहमद

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