ये अर्ज़-ओ-समा क़ुलज़ुम-ओ-सहरा मुतहर्रिक

ये अर्ज़-ओ-समा क़ुलज़ुम-ओ-सहरा मुतहर्रिक

इक तू ही नहीं शम्स है दुनिया मुतहर्रिक

ता-हद्द-ए-नज़र इक वही चेहरा मुतहर्रिक

या हुस्न-ए-मुजस्सम का है जल्वा मुतहर्रिक

इंसानों में अब बू-ए-वफ़ा ही नहीं मिलती

हर शख़्स नज़र आता है तन्हा मुतहर्रिक

ये सोच रहा हूँ उसे किस चीज़ का ग़म है

रहती है मिरे दिल में तमन्ना मुतहर्रिक

यूँ धूप से घबरा के मैं साए में न बैठा

साकिन है अगर पेड़ तो साया मुतहर्रिक

ख़ुश्बू-ए-गुल-ए-तर पे ही मौक़ूफ़ नहीं है

हर शाख़-ए-गुल-ए-तर का है पत्ता मुतहर्रिक

रौशन किए इक ने तो बुझाए दिए इक ने

हरकत में है ज़ुल्मत तो उजाला मुतहर्रिक

जिस की भी जो मंज़िल है वहीं तक ये गया है

राही की बदौलत हुआ रस्ता मुतहर्रिक

वो चाँद हो सूरज हो गुल-ए-तर हो कि शबनम

हम ने तो हर इक चीज़ को देखा मुतहर्रिक

दरिया की हदों में जो उतर जाओगे ऐ 'शम्स'

आएँगे नज़र साहिल-ओ-दरिया मुतहर्रिक

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In Hindi By Famous Poet Shams Ramzi. is written by Shams Ramzi. Complete Poem in Hindi by Shams Ramzi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.